आगरा /ब्यूरो
प्यार की नगरी ताज की गलियों से 1904 की प्रेम कहानी
जिंदगी ना बड़ी कामिनी होती है ज़ब तक साथ होती है तब तक शिकवा शिकायत रहती है और ज़ब कम्बख्त साथ छोड़ती है तो कभी अधूरा पन कर जाती या गाली दिलाती न रहने पर इसी कश्मो कश मे टुकटुक दिन रात एक कर लोगों के साथ मिल कर रहती थी जिसके जिंदगी मे ढाई अक्षर का शब्द तो मानो कसम खा लिया हो नहीं मिलेंगे हम तुम्हे इस जन्म मे….पर फ़िर भी टुकटुक जिंदगी मे हसीन सपने सजाए और ढाई अक्षर के प्रेम का आस लगाई बैठी थी टुकटुक बड़ी हुई शादी हुआ ससुराल गई फ़िर भी समय बीतता गया पर उसकी अधूरी कहानी पुरी नहीं हुई नई नवेली दुल्हन चाँद की दूधिया से नाहाई हुई टुकटुक की जवानी के सपने अपना दम तोड़ने लगे और धीरे धीरे मदमस्त टुकटुक की जवानी भी ढलती गई और अधूरी कहानी भी अधूरे पन्ने से बिखरते गए महलो के ख्वाबों में नहाने वाली टुकटुक जिंदगी के आखिरी पन्ने गिनने लगी घर से ससुराल में सबको समझ कर भी नासमझ बनने लगी और दिन रात अपने खुदा से कहने लगी ऐ पर्वतदिगार आलम अब टुकटुक जैसी किस्मत कीसो को न दीजो चाहे भले ही अगले जन्म मोहे बिटिया कीजो पर टुकटुक जैसा किस्मत किसी भी अभाग्न को न दीजो कभी अकेली रहने वाली टुकटुक दुनिया के आरोप अकलंक और तानो को सुनकर बढ़ने पलने वाली अब माँ बन गई और बच्चों को अपनी नई दुनिया समझ जीने लगी पर समाज की कुरीति बेटा बेटी के फर्क ने उसे इज्जत से जीने नहीं दिया तो शायद खुदा तरस खा उसे समाज का कलंक मिटाने वाला बेटा भी दे दिया पर खुदा की भेजी सुनामी 1911 में ऐसी आई की टुकटुक अधमरी लाश बन गई और कभी बागो में चहकने वाली टुकटुक के मायके का कुल का दीपक अल्लाह को प्यारा हो गया और फ़िर अभागी टूकटूक जिंदगी में सहारा ढूढ़ने लगी कभी तो सुबह होगा और मेरे किस्मत में लिखी छाव पर सूरज की तेज किरण पड़ेगी इसी आस में दिन रात इंतजार करती रही गलत सगतो से पहले से बिगड़ा उसका पति अब और भी बिगड गया नशे और जुए की लत उसके हसते खेलते जिंदगी को और भी अंधेरा कर दिया और फ़िर टुकटुक जिंदगी में धूप के इंतज़ार में एक एक दिन जीती रही और कभी ससुराल या मायके में जिंदगी बिताने लगी अचानक ऊपर वाले ने एक फरिश्ता भेज टुकटुक के जिंदगी में जीने की उम्मीद पैदा की और फिर टुकटुक अपनी मेहनत और जादूजाहाद ने उसके बेजान बाग में फूलो की खुशबु डाली और खुशबु पा टुकटुक अपनों द्वारा दिये गमों को भुलाने लगी थी और किस्मत की धूप पाकर कभी मुरझाई रहने वाली टुकटुक चहकने लगी पर जैसे बचपन में उसके अपने कपड़े निकाल उसके शरीर में ताका झांकी करने लगे जिससे जिद्द पाले बैठी टुकटुक को नायब हीरा मिला जिसकी चमक में दूधली चमकने लगी फ़िर एक दिन ऐसा हुआ हीरा जौहरी के हाथ लगा और वो उसे तराशा जिसकी चमक और खुशबु से टुकटुक की अधूरी दुनिया चमकने लगी और कभी घर से दूर रहने वाली टुकटुक परिवार के जिम्मेदारी से दबने लगी फिर एक दिन टुकटुक को प्यार नफ़रत पैदा करने वाले फ़रिश्ते से प्यार कर बैठी पर फ़िर भी उसका मन प्यासा और अधूरा रहा…….
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